( तर्ज- मेरो प्रभू झूला झुले घरमाँही ० )
गुरुबिन बिरथाही जनम गमाया ।
नर ! काहे मानुजकी
देह कमाया ? ॥टेक ॥
पाप कपट छल माथे लगाये ,
कभु लीन वृत्ति न पाया ।
नारी नरोंका संग कराकर ,
विषयोंमेही भूल खाया ॥ १ ॥
खालीहि आवे औ खालीहि जावे ,
जमधर मार उठाया ।
कछु नहि कीन्हा जो करना था ,
खाली विषय भरमाया ॥२ ॥
ग्यानका मारग जाना न तनमें ,
षड्रिपु साथी कराया ।
कहे दास तुकड्या , मनुजका उद्धारा
बिन गुरु होत न पाया ॥३ ॥
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